कैसी हो मेरी देहरी ?
वापसी....वापसी हो गई
कई दिन बीते कई रातें गुज़री
पर तुम ना बदली मेरी देहरी...
कैसी हो मेरी देहरी ?
दौड़ते-भागते जीवन की उलझनों में
कई मोड़ आये जब तेरी याद आई
पर गुबारों के तूफान से डर गई
तपती रही अन्दर जैसे ये दुपहरी
कैसी हो मेरी देहरी ?
जैसे तैसे कुछ सम्भली हूं
बिखर गई थी कुछ सिमटी हूं
समझौतों की कश्ती में सवार
खुश दिखती हूं... मानो कोई दुल्हन हरी भरी
कैसी हो मेरी देहरी ?
अब जो आई हूं तो ना जाउंगी
तुमको उम्मीद की तरह सजाऊंगी
तुम सहेली...तुम पहेली...
रात का सिलसिला टूटा दिखने लगी सेहरी
कैसी हो मेरी देहरी ?
वापसी....वापसी हो गई
कई दिन बीते कई रातें गुज़री
पर तुम ना बदली मेरी देहरी...
कैसी हो मेरी देहरी ?
दौड़ते-भागते जीवन की उलझनों में
कई मोड़ आये जब तेरी याद आई
पर गुबारों के तूफान से डर गई
तपती रही अन्दर जैसे ये दुपहरी
कैसी हो मेरी देहरी ?
जैसे तैसे कुछ सम्भली हूं
बिखर गई थी कुछ सिमटी हूं
समझौतों की कश्ती में सवार
खुश दिखती हूं... मानो कोई दुल्हन हरी भरी
कैसी हो मेरी देहरी ?
अब जो आई हूं तो ना जाउंगी
तुमको उम्मीद की तरह सजाऊंगी
तुम सहेली...तुम पहेली...
रात का सिलसिला टूटा दिखने लगी सेहरी
कैसी हो मेरी देहरी ?
nice.. very well-written!
ReplyDeleteबेहतरीन, आफरीन और विचारोत्तेजक कविता के लिए बधाई। बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteबेहतरीन कविता अभिलाषा। आप तो धुरंधर कवियत्री हैं।
ReplyDeleteविकास मिश्र
Hi..abhilasha...saw ur old quote oN late shri Ram chatur mallick...glad 2know u r from our family...working as an artist...Rekha mishra..sis of Tez narayan mallick....Amta darbhanga
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