Tuesday, June 07, 2011

वापसी....

कैसी हो मेरी देहरी ?
वापसी....वापसी हो गई
कई दिन बीते कई रातें गुज़री
पर तुम ना बदली मेरी देहरी...

कैसी हो मेरी देहरी ?

दौड़ते-भागते जीवन की उलझनों में
कई मोड़ आये जब तेरी याद आई
पर गुबारों के तूफान से डर गई
तपती रही अन्दर जैसे ये दुपहरी

कैसी हो मेरी देहरी ?

जैसे तैसे कुछ सम्भली हूं
बिखर गई थी कुछ सिमटी हूं
समझौतों की कश्ती में सवार
खुश दिखती हूं... मानो कोई दुल्हन हरी भरी

कैसी हो मेरी देहरी ?

अब जो आई हूं तो ना जाउंगी
तुमको उम्मीद की तरह सजाऊंगी
तुम सहेली...तुम पहेली...
रात का सिलसिला टूटा दिखने लगी सेहरी
कैसी हो मेरी देहरी ?

Thursday, January 27, 2011

तुम कहते हो हम पराये हो गए
हम कहते हैं  हम तुम्हारे हो गए
तुम कोशिश करते हो भुलाने की
हम कोशिश करते हैं तुम्हे पाने की

हर मोड़ पर तुमने साथ छोड़ा
लेकिन हमने नहीं उम्मीद का दामन छोड़ा
कयामत तो एसे ही जिन्दगी में आ गई
अब कयामत तक इंतजार भी करे तो कोई बड़ी बात नही!

Friday, January 14, 2011

परवरिश....

Upbringing...nurturing...raising...अंग्रेजी के ये शब्द अक्सर लोग पोलन-पोषण या परवरिश के लिए करते हैं...जैसे उसकी  अपब्रिंगिंग बहुत हाई-फाई हुई है ...बच्चे की गलती नहीं है नरचरिंग पर डीपेंड करता है। कई बार लड़कियां भी किसी के मुंह पर कह देती हैं कि मुझ से ये नहीं होगा... मेरी परवरिश मुझे ये इजाज़त नहीं देती वगैरह- वगैरह। क्या है ये परवरिश? हम औरतों के लिए तो ये शब्द और भी अहम होता है...एक प्रेशर की कहीं कोई हमारी परवरिश पर सवाल ना उठा दे...चाहे वो स्कूल कॉलेज हो...चाहे वर्किंग प्लेस या फिर ससुराल...एसा लगता है मानो एक मैग्नीफाइंग ग्लास से हर कोई देख रहा हो। चलिए स्कूल टाईम के ही कुछ अनुभव से आपको रुबरु कराती हूं। 7TH- 8TH से लड़कियां बढ़ने लगती है...मतलब एक किशोरी काया की शुरुआत हो जाती है...वैसे आज कल की स्कूल गर्लस्  छठी-सांतवी में ही उस देहलीज पर नजर आती हैं...खैर.. गर्मी की छुट्टियों में नानी आई थी,बड़ी सख्त,हर वक्त सीख देने वाली और  हिसाब से ही लाड-प्यार करने वाली। उनके बारे में कहते हैं कि वो जब बहू बन कर ससुराल आईं तो क्रांति आ गई....लड़कियां स्कूल जाने लगी....विधवायें ब्लाउज पहनने लगी...और तो और भर घूघ तान के ससुर के सामने अपनी ही सास को प्याज-लहसुन खाने देने की इजाज़त को लेकर जीरह तक किया और जीत  भी गई। लेकिन नानी के बारे में ये बाते मेरे गले नहीं उतरती थी....क्योंकि शाम को पापा दो-दो रुपये देते थे कि खेलने के बाद अंडे खा लेना। 50 पैसे का एक उबला अंडा मिलता था तब...भईया के साथ मैं भी चल लेती थी। लेकिन नानी की नजरे मेरे अंडो पर एसी पड़ी की आज भी अंडा खाने में घबराती हूं। घर में घूसते ही नानी को मम्मी से कहते सुना..." खियाओ खूब अंडा लइकी के 'फूट्ट'  के जवान हो जाई फेर बुझाई" अन्दर तक कांप गई मैं...अंडा....जवान...लइकी....फूट्ट....दिलो दिमाग पर एसे गूंज रहे थे मानो सरस्वती पूजा में लाउडस्पीकर पर कोई भोजपूरी अश्लील गाना बज रहा हो । उस गाने का अर्थ ना पता हो फिर भी एहसास हो कि कुछ गंदा है इसमें और नजरे नीचे रखते चल देना है वहां से। मुझे नहीं समझ आया की मेरे अंडा खाने से क्या प्रॉबलम है....और अगर मैं जवान भी होती हूं तो इसमें बुरा क्या है। शायद मेरे माता पिता की परवरिश में नानी को बहुत बड़ी कमी दिखी की लड़की को दोनो भाईयों जैसे ही पाला जा रहा है। आगे सुनिए ....मंगलवार और गुरुवार को अंडा खाने की मनाही थी ब्राह्मण जो ठहरे इसलिए बुधवार को जब मेरा कोमल मन इस बात को खेल में भूल बैठा था मम्मी ने कहा तुम एक ही अंडा खाना और एक रुपये का नीम्बू ले लेना सलाद के लिए। मेरा गोल मटोल चेहरा ये सुनते ही लम्बा हो गया...आक्रोश से भर गई की नानी आग लगाने के लिए आई हैं क्या...मैं नही खाउंगी अंडा...मम्मी मेरे साथ दो नजरी कर रही हैं भाईयों ने मेरी खिल्ली उड़ाई तो... आंखों में आंसु लिए धड़ाक से दरवाजा खोला और धड़-धड़ सीढ़ियों से उतर गई...विराध जताने का यही तरीका था शायद मेरे पास। लेकिन लड़कियों का सपोर्ट सीस्टम उनके घर में ही होता है...पहले तो मेरे भाईयों ने खूब खिल्ली उड़ाई और फिर दोनो भाईयों ने अपने एक अंडे का आधा-आधा टुकड़ा मेरे तरफ बढा दिया...खुद डेढ खाते और मै दो खाती। उनकी इस भावना को देख मैने नानी की चुगली कर डाली...भईया बड़ा था और शायद वो समझ गया था नानी की बात को और छोटे भाई ने कहा दीदी चिंता मत करो हम नहीं बतायेंगे किसी को।
संडे को पापा को ये बात पता चली और चिकन भी बना था...मम्मी ने ना ही मेरा फेवरेट पीस दिया और ना ही भाईयों जितना...अब तो हद ही हो गई थी। मैं झल्लाई और कहा मैं नहीं खाउंगी ! नानी ने एसा देखा जैसे कितनी बड़ी गुस्ताखी की हो...जोर से बोली...चुपचाप खाओ...लड़की होके इतने जोर से बोलते हैं....गाली सुनवाओगी ससुराल में। मैं जब रोती हूं तो आवाज पतली और ऊंची हो जाती है...मेरे घर वालो के लिए आम बात थी पर नानी के लिए बहुत बड़ी बात। दोनो भाई परेशान लेकिन शांत नानी के डर से...पापा ने कहा क्या हुआ इसको जो पसंद हैं वो दो।
नानी- मेहमान एतना लाड-प्यार ठीक नईखे..लड़की जात बा।
पापा- लेकिन खाने-पीने की उम्र में दो नजरी ठीक नहीं है..अंडा-मछली इसके सेहत के लिए भी अच्छा है कम खिलाने से क्या होगा मांजी?
नानी- हमनी ब्राह्मण बानी....ससुराल में ना खाई लोग तब?
पापा- इस उम्र में तो इसे ससुराल क्या होता है पता भी नहीं...खाने-पीने के मामले में दोनजरी ठीक नहीं।
और पापा ने अपने प्लेट से चिकेन लेग मेरी प्लेट में डाल दिया। आज मैं वैसे घर की बहू हूं जहां सिर्फ औरते नॉनवेज नहीं खातीं... लड़के खाते हैं। हंसी आती है कि बचपन में जो बात मेरी नानी उठा रही थी वो फिर मेरे सामने है। फर्क बस इतना है कि नॉनवेज महीनो ना मिले तो कोई फर्क नहीं पड़ता।  
औरत को पौष्टिक खाना खाना चाहिए ताकि वो जीवन की सारी जिम्मेदारियों को निभा सके मसलन घऱ नौकरी दोनो की जिम्मेदारी....मां बनना...ये हमारे पूर्वजों का ही कहनाम है फिर भी हम दकियानूसी बातों को परवरिश के नाम पर लागू करते हैं वो भी ज्यादातर लड़कियों पर। खान-पान भी परवरिश का ही हिस्सा है। ज्यादा नॉनवेज यानि ज्यादा फैट और प्रोटीन...लड़के खायें तो गबरु जवान घर का कुलदीपक.....लड़कियां खाये तो गदराया बदन...लोगो की नजर....ज्यादा उत्तेजना और ना जाने कीतनी ओछी सोच। आज के किशोरियों का बेडौलपन देखकर उनपर तरस आता है। मैक्डॉनल्ड्स और पीज्जा हट के कल्चर में जीने वाली लड़कियां नानी की शब्दों में फूट के जवान हो जाती हैं। अगर हमारा शरीर एसा होता तो शायद 12वी में ही बिआह हो जाता। तन-मन की सुन्दरता तो भारतीय स्त्री की पहचान है....फिगर कॉन्शियस तो होना ही चाहिए लेकिन सही जानकारी के साथ। नानी दादी के बातों का अगर पॉजीटीव और लॉजिकल ढ़ंग से लिया जाये तो उनकी डांट से भी अपने फायदे की चीज़ निकाली जा सकती है। परवरिश के बारे में एक और बात कहना चाहूंगी कि लड़कियां किचन किंग नहीं तो किचन फ्रेन्डली तो होनी ही चाहिएं क्योंकि पुरुषों के दिल का रास्ता पेट से होते हुए जाता है। फिगर के मामले में परफेक्ट टेन नहीं तो परफेक्ट कर्व तो मेनटेन करना ही चाहिए....और आखिर में एडूकेशन और ट्रेडिश्नल वैल्यूज़ का कॉक्टेल बनाना तो आना ही चाहिए। ताकि वो भारतीय मूल्यों के साथ गलत बातों का ना सिर्फ विरोध कर सके बल्कि उचित बातों का समावेश भी अपने घर में  कर सके...आखिर हमें ही तो परवरिश करनी है आने वाली पीढ़ी की।

 

Monday, January 10, 2011

शोहरत की क़ीमत....

शोहरत पाकर भी ग़ुमनाम हैं हम,
गैरों में नाम कमाके अपनो के बीच बदनाम हैं हम।
चाहे रोते हो तकिये में सिर छुपाकर,
सबके सामने नकली हंसी खूब बिखेरते है हम।।


 अपनी जिद में डूबें है...रमें है हम,
 खोई खुशियों को हर हाल में पाने को आमादा हैं हम।
 अब कोई तारीफ करे या रुसवा कर जाये,
अपनी पहचान के लिए बेकरार हैं हम।। 

Saturday, January 08, 2011

First Step....

Hellow friends
My first step... पहला कदम...in the world of blogs i abhilasha pathak a journo is trying to mark my presence amid intellectual people like u.From a long time i was planning to hv my own blog to pen down my feelings ,observation n experiances with people.let me tell u abt myself in less words i ws born in darbhanga ,bihar...did my schooling frm bokaro steel city, jharkhand n then my grads from Kirorimal college,DU.After doing PG in journalism i entered electronic media n worked with several small houses n currently am serving MAHUAA NEWS as anchor/reporter. from Childhood to womanhood i explored my world n still trying to search myself as an individual...i think everybody does so am not exception bt as its said every case  is unique  in itself every human is unique in himself.so lets share this uniqueness present among each of us through this genuine endevour to share our thought so that we could change our perspective n society for betterment n improvement.
Welcome to my blog "DEHRI" which is a women oriented blog...here i want to say that men-women relationship is the most important aspect of our society.A women learns alot not only from father ,brother or husband but friend at school,college n even at work place including seniors .Dehri will make u think,brood,angry n sometimes laugh too.My love...my experiances...my sentiments...my wrath n my wit all in front of  u crossing the DEHRI.

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