Tuesday, June 07, 2011

वापसी....

कैसी हो मेरी देहरी ?
वापसी....वापसी हो गई
कई दिन बीते कई रातें गुज़री
पर तुम ना बदली मेरी देहरी...

कैसी हो मेरी देहरी ?

दौड़ते-भागते जीवन की उलझनों में
कई मोड़ आये जब तेरी याद आई
पर गुबारों के तूफान से डर गई
तपती रही अन्दर जैसे ये दुपहरी

कैसी हो मेरी देहरी ?

जैसे तैसे कुछ सम्भली हूं
बिखर गई थी कुछ सिमटी हूं
समझौतों की कश्ती में सवार
खुश दिखती हूं... मानो कोई दुल्हन हरी भरी

कैसी हो मेरी देहरी ?

अब जो आई हूं तो ना जाउंगी
तुमको उम्मीद की तरह सजाऊंगी
तुम सहेली...तुम पहेली...
रात का सिलसिला टूटा दिखने लगी सेहरी
कैसी हो मेरी देहरी ?

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